वांछित मन्त्र चुनें

ए॒वा पि॒त्रे वि॒श्वदे॑वाय॒ वृष्णे॑ य॒ज्ञैर्वि॑धेम॒ नम॑सा ह॒विर्भिः॑। बृह॑स्पते सुप्र॒जा वी॒रव॑न्तो व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā pitre viśvadevāya vṛṣṇe yajñair vidhema namasā havirbhiḥ | bṛhaspate suprajā vīravanto vayaṁ syāma patayo rayīṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। पि॒त्रे। वि॒श्वऽदे॑वाय। वृष्णे॑। य॒ज्ञैः। वि॒धे॒म॒। नम॑सा। ह॒विऽभिः॑। बृह॑स्पते। सु॒ऽप्र॒जाः। वी॒रऽव॑न्तः। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:50» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़ों के पालन करनेवाले जैसे हम लोग (यज्ञैः) मिले हुए कर्मों से (विश्वदेवाय) संसार के प्रकाशक (वृष्णे) वृष्टि करने और (पित्रे) पालन करनेवाले के लिये (नमसा) सत्कार वा अन्न आदि से (हविर्भिः) ग्रहण करने योग्य उपदेश वा द्रव्यों से (विधेम) करें और अर्थात् क्रिया विधान करें तथा (सुप्रजाः) विद्या और विनयवाली श्रेष्ठ प्रजाओं से युक्त (वीरवन्तः) वीर पुत्रोंवाले (वयम्) हम लोग (रयीणाम्) धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें (एवा) वैसे ही आप हूजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य मेघ के अलङ्कार से सब का पालन करनेवाला है, वैसे ही हम लोग वर्त्ताव करके अति उत्तम पुरुष और राज्य के स्वामी होवें ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे बृहस्पते ! यथा वयं यज्ञैर्विश्वदेवाय वृष्णे पित्रे नमसा हविर्भिर्विधेम सुप्रजा वीरवन्तो वयं रयीणां पतयस्स्याम तथैवा त्वं भव ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (पित्रे) पालकाय (विश्वदेवाय) विश्वस्य प्रकाशकाय (वृष्णे) वृष्टिकराय (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः (विधेम) कुर्य्याम (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (हविर्भिः) आदातुं योग्यैरुपदेशैर्द्रव्यैर्वा (बृहस्पते) बृहतां पालक (सुप्रजाः) विद्याविनययुक्ताः श्रेष्ठाः प्रजा येषान्ते (वीरवन्तः) वीरपुत्राः (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) धनानाम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यो मेघालङ्कारेण सर्वेषां पालको वर्त्तते तथैव वयं वर्त्तित्वाऽत्युत्तमपुरुषा राज्याऽधिपतयो भवेम ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जसा सूर्य मेघांद्वारे सर्वांचे पालन करणारा आहे, तसेच वर्तन आम्ही करावे व अति उत्तम पुरुषाला राज्याचा स्वामी बनवावे. ॥ ६ ॥